नोट : नीचे दिए गए विषय संबंधी संकेत पूर्ण नहीं हैं। प्रतिभागी ऐसे निबंध भी लिख सकते हैं जो हो सकता है कि उप-विषयों में पूरी तरह से फिट न हों, लेकिन किसी न किसी तरीके से मुख्य विषयों से संबंधित हों। प्रतिभागी निम्नलिखित दो विषयों में से किसी एक को चुन सकते हैं :
राजनीतिक दलों, चुनाव लड़ने वालों और स्टेकहोल्डरों द्वारा अपने चुनाव अभियानों और विज्ञापनों को काफी हद तक डिजिटल करने का नया चलन पिछले दशक में विकसित हुआ है। परिणामस्वरूप, इन पहलुओं को नियंत्रित करने वाली पारंपरिक विधिक संरचना को फिर से परिभाषित करने की अत्यधिक गुंजाइश है। क्या प्रिंट और प्रसारण मीडिया को अनुशासित करने वाले मौजूदा नियमों के अलावा सोशल मीडिया पर चुनावी गतिविधियों की निगरानी के लिए विशिष्ट रूप से एक नई विधिक संरचना बनाने की आवश्यकता है? सोशल मीडिया पर राजनैतिक दलों / उम्मीदवारों द्वारा अभिव्यक्ति और व्यय के प्रभावी विनियमन के लिए उस वैकल्पिक विधिक प्रावधान की प्रकृति क्या होनी चाहिए जिन पर प्राय: बिग डेटा एनालिटिक्स और प्रबंधन टीमों का प्रभुत्व होता है? इन सवालों का समाधान डिजिटल स्पेस में चुनावी अखंडता को बनाए रखने और बढ़ावा देने के परिप्रेक्ष्य में किया जा सकता है। वैकल्पिक रूप से, निबंध उनसे निपटने के लिए अधिकार-आधारित संवाद को अपना सकते हैं, क्योंकि सोशल मीडिया पर अभियानों और विज्ञापनों का कोई भी विनियमन स्पष्ट रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संवैधानिक सततता के बारे में सरोकारों को प्रेरित करेगा। इसके अलावा, इस संरचना में सोशल मीडिया कंपनियों की मध्यवर्ती देयता से संबंधित कानूनी मुद्दे इस चर्चा में भूमिका निभा सकते हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर अभियानों के लिए चुनावी प्रचारमुक्त अवधि को लागू करने और मतदान समाप्त होने से पहले नकली और अनधिकृत एग्जिट पोल के परिणामों के प्रकाशन को नियंत्रित करने जैसी संभावित व्यावहारिक चुनौतियां, जिन पर किसी भी भावी विधिक संरचना को अवश्य ध्यान देना चाहिए, पर भी चर्चा की जा सकती है। वास्तव में, कानूनी तर्कों और प्रस्तावों को न्यायसंगत ठहराने के लिए इन सभी उप-विषयों का तुलनात्मक रूप से अध्ययन किया जा सकता है।
इस विषय को कई परिप्रेक्ष्यों से देखा जा सकता है। निबंध में हमारे चुनावी लोकतंत्र की अखंडता की रक्षा करने में भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) की भूमिका पर विचार किया जा सकता हैं। राजनीति को अपराध से मुक्त करने में भारत निर्वाचन आयोग किस प्रकार भूमिका निभा सकता है? चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा निधि-संवर्धन एवं अवैध और अनियमित खर्चों को विनियमित करने में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए भारत निर्वाचन आयोग को भविष्य में क्या करना चाहिए? इसके अलावा, प्रतिभागी इस बात पर भी चर्चा कर सकते हैं कि आदर्श आचार संहिता की विधिक सरंचना को कैसे पुन: तैयार किया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत निर्वाचन आयोग राजनेताओं और पार्टियों को इस संहिता के उल्लंघनों के संबंध में प्रभावी ढंग से रोकने में सक्षम हो। यह इस बात का विश्लेषण करने के अलावा किया जा सकता है कि क्या भारत निर्वाचन आयोग को आंतरिक पार्टी लोकतंत्र के नियमों और सिद्धांतों के गंभीर उल्लंघनों के लिए राजनैतिक दलों को अपंजीकृत करने की शक्ति प्रदान की जानी चाहिए? इसके अलावा, कोई यह भी आकलन कर सकता है कि भारत निर्वाचन आयोग इस चुनावी लोकतंत्र के लोकतांत्रिक अनुपात को कैसे बढ़ा सकता है। अनिवासी (एनआरआई) मतदाताओं के लिए मतदान के अधिकार और सुविधाओं, मतदाता टर्नआउट में सुधार के लिए मतदाता शिक्षा संबंधी गतिविधियों के विविधीकरण, ईवीएम के माध्यम से वोटों की अखंडता और सत्यापन से संबंधित कानूनी पहलूओं और मतदाता सूची से मतदाताओं का नाम हटाने की रोकथाम पर निबंध, इस खंड के अंतर्गत आ सकते हैं। इसके अलावा, निबंधों को भारत निर्वाचन आयोग की संस्थागत स्वतंत्रता के ऐसे पहलू के रूप में फोकस किया जा सकता है जो भारत निर्वाचन आयोग की अपनी भूमिका प्रभावी रूप से निष्पादित करना सुनिश्चित करता है।